Sunday, 22 September 2013
aadil rasheed poet born in kalagarh kalagarh dam
aadil rasheed poet born in kalagarh kalagarh dam
aadil rasheed famous poet born in kalagarh work charge colony kalagarh dam uttrakhand
aadil rasheed famous poet born in kalagarh work charge colony kalagarh dam uttrakhand in ganesh chaturthi mushaira chandausi
famous poetry by aadil rasheed famous poet born in kalagarh work charge colony kalagarh dam uttrakhand
aadil rasheed aur dr. mujeeb shehzar ek mushaire me
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjntg-vfxGjkO46MkXURGZLT49NGjQ54pX9bw_khoDYWt90gwp8Dw0h99olurkWw-N0lTvvgObRwt7Fshd_k2rdEvmI26qHGrZiFLwVapNiAJgF1AIjF9sUQIVP9OL-eJCdtGiQvioDBrE/s320/558272_611285745588530_478225300_n.jpg)
दोस्त पक्के हैं मेरे.....आदिल रशीद कालागढ़
दोस्त पक्के हैं मेरे.....आदिल रशीद कालागढ़
कालागढ वर्क चार्ज कालोनी गूरू द्वारे के और डाक खाना के पास ही सहोदर पनवाडी की दुकान थी जहाँ मै आदिल रशीद उर्फ़ चाँद, और मेरे बचपन के दोस्त शमीम,शन्नू,असरार फास्ट बोलर,धर्मपाल धर्मी , दिनेश सिंह रावत, टोनी, संजय जोजफ़,जाकिर अंसारी अकेला,सलीम बेबस,रमेश तन्हा, राजू, यूसुफ़,शिवसिंह,गौरी,काले,अरविन्द,शीशपाल,नरेश,करतार,दिलीप सिंह बिष्ट जिसे हम सब दिलीप सिंह भ्रष्ट कहते थे जमा होते थे.
हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस सफे कुफुछ क्फ्हफा थफा (तूने उस से कुछ कहा था ) ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते खूब हँसते.
मेरा और जाकिर अंसारी अकेला का एक अलग तरह का शौक़ था या यूँ कहिये जूनून था अपने कालागढ़ का नाम मशहूर करने का इसके लिए हम रेडिओ स्टेशन पर गाने की फरमाईश भेजते उस समय पोस्ट कार्ड 10 पैसे का होता था जो जेब खर्च मिलता सारे पैसों के पोस्टकार्ड ले लेते. आपकी पसंद , आपकी फरमाईश , युव वाणी जैसे प्रोग्राम जो नजीबाबाद रामपुर दिल्ली से प्रसारित होते थे उन प्रोग्राम में जब हमारा नाम आता और उद्घोषक या उद्घोषिका कहती के इस गीत की फरमाईश करने वाले हैं कालागढ़ से आदिल चाँद, जाकिर अकेला,सलीम बेबस, रमेश तन्हा तो हम ऐसे उछलते ऐसे उछलते वैसे तो अब हम वर्ल्ड कप जीतने पर भी नहीं उछलते.
जाकिर बहुत शरारती था एक बार उसने कुछ पोस्ट कार्ड दूसरों के नाम से भी डाल दिए जैसे वर्क चार्ज कालोनी कालागढ़ से नफीसा अन्डो वाली और फिर जो हंगामा हुआ उसमे छुपे छुपे भी घूमे नफीसा को लगातार कम से कम 8 रविवार 50 पैसे के गोलगप्पे रिश्वत के रूप में खिलाने के बावजूद भी उसने समर्थन नहीं दिया और नफीसा ने अम्मी से शिकायत की तो दोनों की अपने अपने घर में ताजपोशी भी हुई.
बाद का काम दोस्तों ने बखूबी अंजाम दिया ख़त दोस्त डालते किसी का भी नाम लिख के और ताजपोशी हम दोनों की होती.
बाद में उस पार्टी में फिल्म न दिखाने के कारण फूट पड़ी और एक "विधायक"टूट कर हमारे दल में आ गया उस ने हम तीनो के परिवार वालों को बताया के बाद के सभी पोस्टकार्ड हमारे उन्ही परम मित्रों ने ही पोस्ट किये थे जो हमारी ताजपोशी के बाद हमारे साथ लाल -लाल आंसुओं से रोया भी करते थे:
दोस्त पक्के हैं मेरे गम में भी रोयेंगे मगर
दिल दुखाना भी ये शैतान नहीं छोड़ेंगे (आदिल रशीद)
(कालागढ़ की धनतेरस में से.....पूरे लेख के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें)
https://www.facebook.com/notes/aadil-rasheed/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A2-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B8-kalagarh-ki-dhanterasaadil-rasheed/10150392750391982
हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस सफे कुफुछ क्फ्हफा थफा (तूने उस से कुछ कहा था ) ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते खूब हँसते.
मेरा और जाकिर अंसारी अकेला का एक अलग तरह का शौक़ था या यूँ कहिये जूनून था अपने कालागढ़ का नाम मशहूर करने का इसके लिए हम रेडिओ स्टेशन पर गाने की फरमाईश भेजते उस समय पोस्ट कार्ड 10 पैसे का होता था जो जेब खर्च मिलता सारे पैसों के पोस्टकार्ड ले लेते. आपकी पसंद , आपकी फरमाईश , युव वाणी जैसे प्रोग्राम जो नजीबाबाद रामपुर दिल्ली से प्रसारित होते थे उन प्रोग्राम में जब हमारा नाम आता और उद्घोषक या उद्घोषिका कहती के इस गीत की फरमाईश करने वाले हैं कालागढ़ से आदिल चाँद, जाकिर अकेला,सलीम बेबस, रमेश तन्हा तो हम ऐसे उछलते ऐसे उछलते वैसे तो अब हम वर्ल्ड कप जीतने पर भी नहीं उछलते.
जाकिर बहुत शरारती था एक बार उसने कुछ पोस्ट कार्ड दूसरों के नाम से भी डाल दिए जैसे वर्क चार्ज कालोनी कालागढ़ से नफीसा अन्डो वाली और फिर जो हंगामा हुआ उसमे छुपे छुपे भी घूमे नफीसा को लगातार कम से कम 8 रविवार 50 पैसे के गोलगप्पे रिश्वत के रूप में खिलाने के बावजूद भी उसने समर्थन नहीं दिया और नफीसा ने अम्मी से शिकायत की तो दोनों की अपने अपने घर में ताजपोशी भी हुई.
बाद का काम दोस्तों ने बखूबी अंजाम दिया ख़त दोस्त डालते किसी का भी नाम लिख के और ताजपोशी हम दोनों की होती.
बाद में उस पार्टी में फिल्म न दिखाने के कारण फूट पड़ी और एक "विधायक"टूट कर हमारे दल में आ गया उस ने हम तीनो के परिवार वालों को बताया के बाद के सभी पोस्टकार्ड हमारे उन्ही परम मित्रों ने ही पोस्ट किये थे जो हमारी ताजपोशी के बाद हमारे साथ लाल -लाल आंसुओं से रोया भी करते थे:
दोस्त पक्के हैं मेरे गम में भी रोयेंगे मगर
दिल दुखाना भी ये शैतान नहीं छोड़ेंगे (आदिल रशीद)
(कालागढ़ की धनतेरस में से.....पूरे लेख के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें)
https://www.facebook.com/notes/aadil-rasheed/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A2-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B8-kalagarh-ki-dhanterasaadil-rasheed/10150392750391982
एशिया का सब से बड़ा मिटटी का बाँध। कालागढ़ kalagarh dam
एशिया का सब से बड़ा मिटटी का बाँध। कालागढ़ kalagarh dam
उत्तराखंड में रामगंगा नदी पर बना कालागढ़ डैम दुनिया के प्रसिद्ध अजूबों जैसा ही है। इसे एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम होने का सौभाग्य प्राप्त है। डैम एरिया में मैसूर के कावेरी नदी पर बने वृंदावन गार्डन की तर्ज पर विकसित शानदार उद्यान भी है। कालागढ़ से कार्बेट में प्रवेश के लिए एक गेट भी है। इस गेट से प्रवेश कर कार्बेट के वन्य प्राणियों का भी आसानीसे अवलोकन किया जा सकता है। यहां से कंडी मार्ग से कोटद्वार और रामनगर भी जाया जा सकता है।
शिवालिक पहाड़ियां पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर रामगंगा के तट पर कालागढ़ स्थित है। दिल्ली से मेरठ, बिजनौर होकर लगभग पांच घंटे में कालागढ़ पहुंचा जा सकता है। कालागढ़ में सिंचाई विभाग के कुछ रेस्टहाउस और प्रशिक्षण केंद्र हैं। डैम बनने के समय कर्मचारियों और अधिकरियों के लिए कुछ कॉलोनी बनाई गई थीं। रिजर्व वन होने के कारण डैम बनने के बाद कालागढ़ की भूमि कार्बेट प्रशासन को सौंप दी गई। उसने यहां बनी कई कॉलोनी गिरा दी। हालांकि कुछ कालोनी अब भी हैं। यहां एक छोटा बाजार भी है।
मिट्टी का डैम होने के कारण कालागढ़ एक दर्शनीय स्थल है। रामगंगा के पानी को रोकने के लिए पहाड़ियों के बीच रेत-सीमेंट का ढांचा नहीं, बल्कि मिट्टी और पत्थर लगाए गए हैं। बांध के साथ ही बिजली घर भी बना है। यहां 66-66 मेगावाट की तीन यूनिट लगी हैं। तीनों मिलाकर 198 मेगावाट बिजली बनाती है। डैम में 365.3 मीटर पानी सिंचाई के लिएरिजर्व वाटर के रूप में रखा जाता है।
बांध के नजदीक शानदार पार्क तो है ही, इसमें बनी सुरंग भी कम आकर्षक नहीं है। लगभग 70 मीटर गहरी इस सुरंग से रामगंगाके जल के नीचे पहुंचा जा सकता है। जल के नीचे अपने को खडे़ देखकर शरीर में अजीब-सी झुरझुरी उठने लगती है। यहीं एक सुरंग अंदर ही अंदर बिजलीघर तक चली जाती है। डैम के नीचे एक तरह से सुरंगोंका जाल बिछा हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें प्रवेश नहीं दिया जाता।
रामगंगा नदी में घड़ियाल तथा विभिन्न प्रकार की मछलियां हैं। डैम एरिया में वृंदावन गार्डन की तरह विकसित एक उद्यान के 450 मीटर लंबे फव्वारे में बहता पानी और उस पर पड़ती रंग-बिरंगी रोशनी मन को मोह लेती है। इस उद्यान मेंविभिन्न प्रजातियों के पौधे और फूल भी कम आकर्षक नहीं हैं। हालांकि देखरेख केअभाव में उद्यान इस समय खस्ता हालत में हैं। अगर कालागढ़ पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए, तो यह एक शानदार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।
उत्तराखंड में रामगंगा नदी पर बना कालागढ़ डैम दुनिया के प्रसिद्ध अजूबों जैसा ही है। इसे एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम होने का सौभाग्य प्राप्त है। डैम एरिया में मैसूर के कावेरी नदी पर बने वृंदावन गार्डन की तर्ज पर विकसित शानदार उद्यान भी है। कालागढ़ से कार्बेट में प्रवेश के लिए एक गेट भी है। इस गेट से प्रवेश कर कार्बेट के वन्य प्राणियों का भी आसानीसे अवलोकन किया जा सकता है। यहां से कंडी मार्ग से कोटद्वार और रामनगर भी जाया जा सकता है।
शिवालिक पहाड़ियां पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर रामगंगा के तट पर कालागढ़ स्थित है। दिल्ली से मेरठ, बिजनौर होकर लगभग पांच घंटे में कालागढ़ पहुंचा जा सकता है। कालागढ़ में सिंचाई विभाग के कुछ रेस्टहाउस और प्रशिक्षण केंद्र हैं। डैम बनने के समय कर्मचारियों और अधिकरियों के लिए कुछ कॉलोनी बनाई गई थीं। रिजर्व वन होने के कारण डैम बनने के बाद कालागढ़ की भूमि कार्बेट प्रशासन को सौंप दी गई। उसने यहां बनी कई कॉलोनी गिरा दी। हालांकि कुछ कालोनी अब भी हैं। यहां एक छोटा बाजार भी है।
मिट्टी का डैम होने के कारण कालागढ़ एक दर्शनीय स्थल है। रामगंगा के पानी को रोकने के लिए पहाड़ियों के बीच रेत-सीमेंट का ढांचा नहीं, बल्कि मिट्टी और पत्थर लगाए गए हैं। बांध के साथ ही बिजली घर भी बना है। यहां 66-66 मेगावाट की तीन यूनिट लगी हैं। तीनों मिलाकर 198 मेगावाट बिजली बनाती है। डैम में 365.3 मीटर पानी सिंचाई के लिएरिजर्व वाटर के रूप में रखा जाता है।
बांध के नजदीक शानदार पार्क तो है ही, इसमें बनी सुरंग भी कम आकर्षक नहीं है। लगभग 70 मीटर गहरी इस सुरंग से रामगंगाके जल के नीचे पहुंचा जा सकता है। जल के नीचे अपने को खडे़ देखकर शरीर में अजीब-सी झुरझुरी उठने लगती है। यहीं एक सुरंग अंदर ही अंदर बिजलीघर तक चली जाती है। डैम के नीचे एक तरह से सुरंगोंका जाल बिछा हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें प्रवेश नहीं दिया जाता।
रामगंगा नदी में घड़ियाल तथा विभिन्न प्रकार की मछलियां हैं। डैम एरिया में वृंदावन गार्डन की तरह विकसित एक उद्यान के 450 मीटर लंबे फव्वारे में बहता पानी और उस पर पड़ती रंग-बिरंगी रोशनी मन को मोह लेती है। इस उद्यान मेंविभिन्न प्रजातियों के पौधे और फूल भी कम आकर्षक नहीं हैं। हालांकि देखरेख केअभाव में उद्यान इस समय खस्ता हालत में हैं। अगर कालागढ़ पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए, तो यह एक शानदार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।
Saturday, 14 September 2013
dhartee ko aakash pukaare
अगर आपका भी सम्बन्ध कालागढ़ से है और आपको भी अपने बिछड़े हुए दोस्त याद आते हैं तो आप नीचे दिए इमेल पर ईमेल करें या दिए हुए फेसबुक पर मेसेज छोड़ें। ।आदिल रशीद
aadilrasheed1967@gmail.com
facebook
www.facebook.com/aadilrasheedpoeti
agar aap ka bachpan kalagarh me guzra hai aur aapko bhi kalagarh bahut yaad aata hai to plz apni jaankari den is email par
aadilrasheed1967@gmail.com
facebook par bhi jud sakte hain
www.facebook.com/aadilrasheedpoeti
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kalagarh 6-9-2013 aadil rasheed
सुबह सवेरे ही निकल पड़े पुरानी यादों को ताज़ा करने और जा पहुंचे मीरा सोत जो के मछली मारने का एक यादगार पॉइंट है लेकिन अब वहां बहुत कुछ बदल गया है
मीरा सोत में कुछ पुराने दोस्तों से या यूँ कहो उन पुराने दोस्तों के बच्चों से मुलाक़ात हुई.सुरमई धुप में बड़े आराम से धूप सेंक रहे थे
हमने भी इनको परेशान करना मुनासिब नहीं समझा और निकल पड़े कहीं और
आगे जा कर मछली मारी और भून के खाई नदी में काफी मेहनत के बाद से मछली मरने के बाद वहीँ भून के खाने का मज़ा ही अलग होता है कभी मौक़ा लगे तो आजमा कर देखना धीरे धीरे शाम होती गयी फिर सूरज के अस्त होने का दिलकश मंज़र देखा और लौट आये घर को। …अदिल रशीद
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