Sunday, 22 September 2013

mujeeb shehzar and aadil rasheed chandausi ke ganesh chaturthi ke mushaire me

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20 sep 2013



aadil rasheed poet born in kalagarh kalagarh dam



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दोस्त पक्के हैं मेरे.....आदिल रशीद कालागढ़

दोस्त पक्के हैं मेरे.....आदिल रशीद कालागढ़

September 17, 2013 at 8:38pm
कालागढ वर्क चार्ज कालोनी गूरू द्वारे  के और डाक खाना के पास ही सहोदर पनवाडी की दुकान थी जहाँ  मै आदिल  रशीद उर्फ़ चाँद, और मेरे बचपन के दोस्त शमीम,शन्नू,असरार फास्ट बोलर,धर्मपाल धर्मी , दिनेश सिंह रावत, टोनी, संजय जोजफ़,जाकिर अंसारी अकेला,सलीम बेबस,रमेश तन्हा, राजू, यूसुफ़,शिवसिंह,गौरी,काले,अरविन्द,शीशपाल,नरेश,करतार,दिलीप सिंह बिष्ट जिसे हम सब दिलीप सिंह भ्रष्ट कहते थे जमा होते थे.

हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस सफे कुफुछ क्फ्हफा थफा (तूने उस से कुछ कहा था ) ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते खूब हँसते.

मेरा और जाकिर अंसारी अकेला का एक अलग तरह का शौक़ था या यूँ कहिये जूनून था अपने कालागढ़ का नाम मशहूर करने का इसके लिए हम रेडिओ स्टेशन पर गाने की फरमाईश भेजते उस समय पोस्ट कार्ड 10 पैसे का होता था जो जेब खर्च मिलता सारे पैसों के पोस्टकार्ड ले लेते. आपकी पसंद , आपकी फरमाईश , युव वाणी जैसे प्रोग्राम जो नजीबाबाद रामपुर दिल्ली से प्रसारित होते थे उन प्रोग्राम में जब हमारा नाम आता और उद्घोषक या उद्घोषिका कहती के इस गीत की फरमाईश करने वाले हैं कालागढ़ से आदिल चाँद, जाकिर अकेला,सलीम बेबस, रमेश तन्हा तो हम ऐसे उछलते ऐसे उछलते वैसे तो अब हम वर्ल्ड कप जीतने पर भी नहीं उछलते.

जाकिर  बहुत शरारती था एक बार उसने कुछ पोस्ट कार्ड  दूसरों के नाम से भी डाल दिए जैसे वर्क चार्ज कालोनी कालागढ़ से नफीसा अन्डो वाली और फिर जो हंगामा हुआ उसमे छुपे छुपे भी घूमे नफीसा को लगातार कम से कम 8 रविवार 50 पैसे के गोलगप्पे रिश्वत के रूप में खिलाने के बावजूद भी उसने समर्थन नहीं दिया और नफीसा ने अम्मी से शिकायत की तो दोनों  की अपने अपने घर में ताजपोशी भी हुई.
बाद का काम दोस्तों ने बखूबी अंजाम दिया ख़त दोस्त डालते किसी का भी नाम लिख के और ताजपोशी हम दोनों की होती.
बाद में उस पार्टी में फिल्म न दिखाने  के कारण फूट पड़ी और एक "विधायक"टूट कर हमारे दल में आ गया उस ने हम तीनो के परिवार वालों को बताया के बाद के सभी पोस्टकार्ड हमारे उन्ही परम मित्रों ने ही पोस्ट किये थे जो हमारी ताजपोशी के बाद हमारे साथ लाल -लाल आंसुओं से रोया भी करते थे:

दोस्त पक्के हैं मेरे गम में भी रोयेंगे मगर
दिल दुखाना भी ये शैतान नहीं छोड़ेंगे (आदिल रशीद)

(कालागढ़ की धनतेरस में से.....पूरे लेख के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें)
https://www.facebook.com/notes/aadil-rasheed/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A2-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B8-kalagarh-ki-dhanterasaadil-rasheed/10150392750391982

एशिया का सब से बड़ा मिटटी का बाँध। कालागढ़ kalagarh dam

एशिया  का सब से बड़ा मिटटी का बाँध। कालागढ़ kalagarh dam 

उत्तराखंड में रामगंगा नदी पर बना कालागढ़ डैम दुनिया के प्रसिद्ध अजूबों जैसा ही है। इसे एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम होने का सौभाग्य प्राप्त है। डैम एरिया में मैसूर के कावेरी नदी पर बने वृंदावन गार्डन की तर्ज पर विकसित शानदार उद्यान भी है। कालागढ़ से कार्बेट में प्रवेश के लिए एक गेट भी है। इस गेट से प्रवेश कर कार्बेट के वन्य प्राणियों का भी आसानीसे अवलोकन किया जा सकता है। यहां से कंडी मार्ग से कोटद्वार और रामनगर भी जाया जा सकता है।
शिवालिक पहाड़ियां पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर रामगंगा के तट पर कालागढ़ स्थित है। दिल्ली से मेरठ, बिजनौर होकर लगभग पांच घंटे में कालागढ़ पहुंचा जा सकता है। कालागढ़ में सिंचाई विभाग के कुछ रेस्टहाउस और प्रशिक्षण केंद्र हैं। डैम बनने के समय कर्मचारियों और अधिकरियों के लिए कुछ कॉलोनी बनाई गई थीं। रिजर्व वन होने के कारण डैम बनने के बाद कालागढ़ की भूमि कार्बेट प्रशासन को सौंप दी गई। उसने यहां बनी कई कॉलोनी गिरा दी। हालांकि कुछ कालोनी अब भी हैं। यहां एक छोटा बाजार भी है।
मिट्टी का डैम होने के कारण कालागढ़ एक दर्शनीय स्थल है। रामगंगा के पानी को रोकने के लिए पहाड़ियों के बीच रेत-सीमेंट का ढांचा नहीं, बल्कि मिट्टी और पत्थर लगाए गए हैं। बांध के साथ ही बिजली घर भी बना है। यहां 66-66 मेगावाट की तीन यूनिट लगी हैं। तीनों मिलाकर 198 मेगावाट बिजली बनाती है। डैम में 365.3 मीटर पानी सिंचाई के लिएरिजर्व वाटर के रूप में रखा जाता है।
बांध के नजदीक शानदार पार्क तो है ही, इसमें बनी सुरंग भी कम आकर्षक नहीं है। लगभग 70 मीटर गहरी इस सुरंग से रामगंगाके जल के नीचे पहुंचा जा सकता है। जल के नीचे अपने को खडे़ देखकर शरीर में अजीब-सी झुरझुरी उठने लगती है। यहीं एक सुरंग अंदर ही अंदर बिजलीघर तक चली जाती है। डैम के नीचे एक तरह से सुरंगोंका जाल बिछा हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें प्रवेश नहीं दिया जाता।
रामगंगा नदी में घड़ियाल तथा विभिन्न प्रकार की मछलियां हैं। डैम एरिया में वृंदावन गार्डन की तरह विकसित एक उद्यान के 450 मीटर लंबे फव्वारे में बहता पानी और उस पर पड़ती रंग-बिरंगी रोशनी मन को मोह लेती है। इस उद्यान मेंविभिन्न प्रजातियों के पौधे और फूल भी कम आकर्षक नहीं हैं। हालांकि देखरेख केअभाव में उद्यान इस समय खस्ता हालत में हैं। अगर कालागढ़ पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए, तो यह एक शानदार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।

Saturday, 14 September 2013

dhartee ko aakash pukaare

 अगर आपका भी सम्बन्ध कालागढ़ से है और आपको भी अपने बिछड़े हुए दोस्त याद आते हैं तो आप नीचे दिए इमेल पर ईमेल करें या दिए हुए फेसबुक पर मेसेज छोड़ें। ।आदिल रशीद
aadilrasheed1967@gmail.com
facebook
www.facebook.com/aadilrasheedpoeti


agar aap ka bachpan kalagarh me guzra hai aur aapko bhi kalagarh bahut yaad aata hai to plz apni jaankari den is email par
aadilrasheed1967@gmail.com
facebook par bhi jud sakte hain
www.facebook.com/aadilrasheedpoeti

kalagarh 6-9-2013 aadil rasheed

सुबह सवेरे ही निकल पड़े पुरानी  यादों को ताज़ा करने और जा पहुंचे मीरा सोत जो के मछली मारने का एक यादगार पॉइंट है लेकिन अब वहां बहुत कुछ बदल गया है
मीरा सोत में  कुछ पुराने दोस्तों से या यूँ कहो उन पुराने दोस्तों के बच्चों से मुलाक़ात हुई.सुरमई धुप में बड़े आराम से धूप  सेंक रहे थे 
हमने भी इनको परेशान करना मुनासिब नहीं समझा और निकल पड़े कहीं और

kalagarh uttrakhand meerasot




आगे जा कर मछली मारी और भून के खाई  नदी में काफी मेहनत के बाद  से मछली मरने के बाद वहीँ भून के खाने का मज़ा ही अलग होता है कभी मौक़ा लगे तो आजमा कर देखना धीरे धीरे शाम होती गयी फिर सूरज के अस्त होने का दिलकश मंज़र देखा और लौट आये घर को। …अदिल रशीद

Friday, 6 January 2012

aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh

BUS STAND WORK CHARGE COLONY KALAGARH BABU ANSARI 
BUS STAND WORK CHARGE COLONY KALAGARH BABU ANSARI

BUS STAND WORK CHARGE COLONY KALAGARH BABU ANSARI

BUS STAND WORK CHARGE COLONY KALAGARH BABU ANSARI 
 BUS STAND WORK CHARGE COLONY KALAGARH

Wednesday, 4 January 2012

B-720 work charge colony kalagarh


B-720 work charge colony kalagarh


B-720 work charge colony kalagarh

anees redio service work charge market

anees redio service work charge market kalagarh

anees redio service work charge market  kalagarh



aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh

aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh
aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony

aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh

aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh
aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony

aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh

aadil rasheed in front of his first school masjid work charg colony kalagarh


Tuesday, 8 November 2011

sahodar ki dukan in kalagarh by aadil rasheed

कालागढ की धनतेरस
कालागढ वर्क चार्ज कालोनी गूरू द्वारे के और डाक खाना के पास ही सहोदर पनवाडी की दुकान थी जहाँ मै आदिल रशीद
 उर्फ़ चाँद, और मेरे बचपन के दोस्त दिलीप सिंह बिष्ट , दिनेश सिंह रावत उर्फ़ दीनू ,धरम पल सिंह धर्मी,शमीम,शन्नू,असरार फास्ट बोलर,संजय जोजफ़,जाकिर अकेला,सलीम बेबस,रमेश तन्हा,राजू,यूसुफ़,शिवसिंह,गौरी,काले,अरविन्द,शीशपाल,नरेश,करतार,सभी जमा होते थे,और हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस नफे सफे ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते,
चांदनी रातों में पहाड़ों का हुस्न कोई शब्दों में बयान नहीं कर सकता उसे तो बस महसूस किया जा सकता है ,वही दौर वी सी आर का शुरूआती दौर भी था 50 पैसे में नई से नई फिल्म ज़मीन पर बैठ कर और एक रूपये में बालकोनी में यानि छ्त से बैठकर.
सहोदर की दुकान ही सारी प्लानिंग का अड्डा थी वही से सब ख़बरें मिला करती थी कहाँ क्या हुआ ,कहाँ क्या होगा ,
सहोदर कि दुकान के बगल में ही रात को भजन कीर्तन पुरबिया गीतों कि महफ़िल जमती और जब सुकुमार भैया और शारदा भौजी बिरहा गाते तो मन हूम-हूम करता उस समय यही मनोरंजन का साधन था और दिन में टोनी के टेलीवीजन (जो पूरी कालोनी में इकलोता टी वी था और सउदी अरब से टोनी का भाई लाया था ) पर इंडिया पाकिस्तान का टेस्ट मैच चलता तो २५-३० फुट ऊँचा बांस पर एंटीना लगा होता और झिलमिलाती हुई तस्वीर को साफ़ कने कि नाकाम कोशिश में पूरा दिन निकल जाता....अरे -अरे थोडा बाएं थोडा सा दायें बस बस अरे पहले साफ़ था अब और ख़राब होगया अब दूसरा तीस मार खां जाता हट तेरे बस का कुछ नहीं मैं करता हूँ और चार चार महारथी एक साथ और देख कर भी उस टीवी रुपी मछली कि आँख न भेद पाते और शाम हो जाती,
तमन्ना अमरोहवी का क्वाटर C-823 था यानि दीवार से दीवार मिली थी उनके यहाँ अक्सर मजलिस का एहतमाम होता मर्सिहा,मंक़वत,सलाम ,कि महफ़िल जमती मैं भी अम्मी अब्बू के साथ वहाँ जाता धीरे धीरे मैं ने बोलना सीखा होगा मुझे लगता है यही मजलिसें मेरी शायरी कि बुनियाद है क्युनके वहां इतनी बढ़िया और मुदल्लल शायरी सुनी है जो आज भी ज़हनो दिल पर हावी है
सहोदर की दुकान से धन्नो का मकान साफ़ नज़र आता था,और एक रास्ता पूनम के घर की तरफ़ जाता था बाद मे राजू की शादी पूनम से हुई दोस्तो की देर रात तक महफ़िल जमतीं थी,रात को सब अपने-अपने परिवार के साथ घूमने निकलते थे,लडकियाँ बहुए और भाभीयाँ एक साथ हो जाती थी,बूढे अलग जवान अलग,देर रात तक क्लब के अन्दर और मैदान मे डेरा रहता फ़िर सब वापस आते
दुर्गा पूजा,रामलीला के दिनो मे तो जैसे बहार ही आ जाती थी इन ही दिनो का तो साल भर इन्तजार रहता था मुझे आज भी याद है के दुर्गा पूजा और रामलीला के बाद धनतेरस आती अम्मी और अब्बु धनतेरस पर खूब खरीदारी करते कई बार कुछ तंग जहन मुस्लिम्स ने टोका भी के अब्दुल रशीद साहेब धनतेरस पर आप खरीदारी क्यूँ करते हैं ये इस्लाम के खिलाफ़ है अब्बू सिर्फ़ मुस्करा देते एक धनतेरस पर अब्दुल्लाह साहेब ज़िद ही पकड गये और कई मुस्लिम दोस्तो के साथ अब्बू को शर्मीन्दा करने पर आमादा हो गये तो अब्बू ने मुस्कराते हुए जवाब दिया के पूरी कालोनी इस दिन खरीदारी करती है बच्चे कितनी बेसब्री से इस दिन का इन्तज़ार करते है इन मासूमो का दिल दुखाना मेरे बस की बात नही बच्चो को बच्चा ही रहने दें इन के ज़ह्नो मे हिन्दू मुस्लिम का ज़हर न घोलें
मुझे खूब याद है दीपावली की रात एक दुसरे को तोहफे देते समय आँखे नम हो जाती थीं पता नही अगले साल हम यहाँ रहेगे या तबादला हो जायेगा क्यूँ के वहाँ सब परदेसी थे सरकारी मुलाजिम थे और बिछडने का खौफ़ हमेशा रहता था
वहाँ धर्म जाति का आडम्बर नही था शिया सुन्नी का झगड़ा भी नहीं था किसी का किसी से खून का रिश्ता भी नही था मगर एक बेशकीमती रिश्ता था मुहब्बत का रिश्ता, अपनेपन का रिश्ता मुझे हर धनतेरस पर बहुत से चेहरे हू ब हू बैसे ही याद आ जाते हैं जैसे वो उस समय थे उन मे से बहुत से तो अब इस दुनिया मे भी नही होंगे (देखें नोट) और बहुत से मेरी ही तरह बूढापे की दहलीज़ पर होगे मगर खयालो मे वो आज भी वैसे ही आते हैं जैसा मैने उन को आखिरी बार देखा था ...... मै अपने ये शेर उन को समर्पित करता हूँ
वो जब भी ख्वाब मे आये तो रत्ती भर नहीं बदले
ख्यालों मे बसे चेहरे कभी बूढे नहीं होते
ज़रा पुरवाई चल जाए तो टांके टूट जाते हैं
बहुत से ज़ख्म होते है, कभी अच्छे नहीं होते
हमारे ज़ख्म शाहिद हैं के तुम को याद रक्खा है
अगर हम भूल ही जाते तो ये रिसते नहीं होते
कई मासूम चेहरे याद आये
किताबों से जो पर तितली के निकले
नोट 1.जैसे सरिता भाभी नीता भाभी कविता दीदी,रजनी दीदी, जगदीश भैया,सहोदर भैया सुकुमार भैया ,शारदा भौजी , हमारी उम्र उस वक़्त 12-15 वर्ष की थी और इन सब कि लगभग30-35
2. चोबे अंकल,किशन अंकल,शर्मा अंकल ,सक्सेना अंकल,वर्माजी , रावत अंकल, नथानी अंकल, गोस्वामी अंकल,शकूर चच्चा, रमजानी चच्चा,अब्दुल्लाह चच्चा,नसीम चच्चा,पुत्तन चच्चा,मिर्ज़ा जी रिज़वी साहेब,तमन्ना अमरोहवी साहेब,परचम साहेब,सिद्दीकी ठेकेदार,ज़फीर ठेकेदार, नकवी साहेब(C-855) दुसरे नकवी साहेब हैडिल कालोनी थोमस अंकल जोसेफ अंकल,सरदार परमजीत पम्मी और एक साहेब जो बालीबाल में पूरी कालोनी के उस्ताद थे शिया थे टोनी के सामने रहते थे मैं उन का नाम भूल रहा हूँ शायद शकील राजा था और बहुत से अब्बू के दोस्त और अम्मी की सहेलियां
............आदिल रशीद 3-11-2010
शाहिद= गवाह,
मेरा जन्म C-824,वर्क चार्ज कालोनी कालागढ़ में हुआ घर में सब चाँद कहते थे , अब्बू का नाम अब्दुल रशीद, बड़े भाई का नाम खलील अहमद ,उसके बाद तौफीक अहमद,छोटा भाई रईस छुट्टन बहन किसवरी,मिसवरी,और कौसर परवीन
भाई साहेब खलील के दोस्त रज्जन,प्रदीप शॉप no.4,मुन्ना ठेकेदार,सलाउद्दीन नाई,

Saturday, 13 November 2010

दो शेर अशआर /आदिल रशीद /aadil rasheed

आज निपटे हैं ज़िम्मेदारी से आज से
आज से तुम को याद करना है
जिन्दगी की उलझनों ने मुझे इतना वक़्त नहीं दिया के मैं तुम्हे उस एहतमाम से याद कर सकूं, उस तरह याद कर सकूं जिस तरह याद किया जाना तुम्हारा हक है मुझ पर मै आज ज़िन्दगी की तमाम उलझनों से आज़ाद हूँ आज मैं वाकई तुम्हे उस तरह याद कर सकता हूँ सच्चे दिल से ...............याद करने का अभिनय नहीं

पहले फरयाद उन से करनी है
फैसला उसके बाद करना है
पहले रिश्ता बहाल करने की इल्तिजा ,फरयाद गुज़ारिश, बीते खुशनुमा दिनों का हवाला,वास्ता यानि हर मुमकिन कोशिश के किसी तरह रिश्ता बहाल रहे ,और जब कोई रास्ता न बचे तो फिर हार के बे मन से एक गम्भीर फैसला यानि तर्के ताल्लुक
आदिल रशीद

Wednesday, 3 November 2010

find your self /pahchano aap is me kahan ho











कालागढ की धनतेरस/ kalagarh ki dhanteras/aadil rasheed

 कालागढ की धनतेरस
कालागढ वर्क चार्ज कालोनी गूरू द्वारे के और डाक खाना के पास ही सहोदर पनवाडी की दुकान थी जहाँ  मै आदिल  रशीद उर्फ़ चाँद, और मेरे बचपन के दोस्त शमीम,शन्नू,असरार फास्ट बोलर,धर्मपाल धर्मी , दिनेश सिंह रावत, टोनी, संजय जोजफ़,जाकिर अंसारी अकेला,सलीम बेबस,रमेश तन्हा,राजू,यूसुफ़,शिवसिंह,गौरी,काले,अरविन्द,शीशपाल,नरेश,करतार,दिलीप सिंह बिष्ट जिसे हम सब दिलीप सिंह भ्रष्ट कहते थे जमा होते थे.
हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस सफे कुफुछ क्फ्हफा थफा (तूने उस से कुछ कहा था ) ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते खूब हँसते.

मेरा और जाकिर अंसारी अकेला का एक अलग तरह का शौक़ था या यूँ कहिये जूनून था अपने कालागढ़ का नाम मशहूर करने का इसके लिए हम रेडिओ स्टेशन पर गाने की फरमाईश भेजते उस समय पोस्ट कार्ड 10 पैसे का होता था जो जेब खर्च मिलता सारे पैसों के पोस्टकार्ड ले लेते. आपकी पसंद , आपकी फरमाईश , युव वाणी जैसे प्रोग्राम जो नजीबाबाद रामपुर दिल्ली से प्रसारित होते थे उन प्रोग्राम में जब हमारा नाम आता और उद्घोषक या उद्घोषिका कहती के इस गीत की फरमाईश करने वाले हैं कालागढ़ से आदिल चाँद, जाकिर अकेला,सलीम बेबस, रमेश तन्हा तो हम ऐसे उछलते ऐसे उछलते वैसे तो अब हम वर्ल्ड कप जीतने पर भी नहीं उछलते.

बाद का काम दोस्तों ने बखूबी अंजाम दिया ख़त दोस्त डालते नफीसा और जमीला का नाम लिख के ताजपोशी हम तीनों की होती.
बाद में उस पार्टी में फिल्म न दिखाने  के कारण फूट पड़ी और एक "विधायक"टूट कर हमारे दल में आ गया उस ने हम तीनो के परिवार वालों को बताया के बाद के सभी पोस्टकार्ड हमारे उन्ही परम मित्रों ने ही पोस्ट किये थे जो हमारी ताजपोशी के बाद हमारे साथ लाल -लाल आंसुओं से रोया भी करते थे:

दोस्त पक्के हैं मेरे गम में भी रोयेंगे मगर
दिल दुखाना भी ये शैतान नहीं छोड़ेंगे (आदिल रशीद)

चांदनी रातों में पहाड़ों का हुस्न कोई शब्दों में बयान नहीं कर सकता उसे तो बस महसूस किया जा सकता है ,वही दौर वी सी आर  का शुरूआती दौर भी था  50  पैसे में नई से नई फिल्म ज़मीन पर बैठ कर और एक रूपये  में बालकोनी में यानि छ्त से बैठकर.
सहोदर की दुकान ही  सारी प्लानिंग का अड्डा थी वही से सब ख़बरें मिला करती थी कहाँ क्या हुआ ,कहाँ क्या होगा ,
सहोदर कि दुकान के बगल में ही रात को  भजन कीर्तन पुरबिया गीतों कि महफ़िल जमती और जब सुकुमार भैया और शारदा भौजी बिरहा गाते तो मन हूम-हूम करता उस समय यही मनोरंजन का साधन था और दिन में टोनी के टेलीवीजन (जो पूरी कालोनी में इकलोता टी वी था और सउदी अरब से टोनी का भाई लाया था ) पर इंडिया पाकिस्तान का टेस्ट मैच चलता तो २५-३० फुट ऊँचा बांस पर एंटीना लगा होता और झिलमिलाती हुई तस्वीर को साफ़ कने कि नाकाम कोशिश में पूरा दिन निकल जाता....अरे -अरे थोडा बाएं थोडा सा दायें बस बस अरे पहले साफ़ था अब और ख़राब होगया  अब दूसरा तीस मार खां  जाता हट तेरे बस का कुछ नहीं मैं करता हूँ और चार चार महारथी एक साथ और देख कर भी उस टीवी रुपी मछली कि आँख न भेद पाते और शाम हो  जाती,
तमन्ना अमरोहवी का क्वाटर C-823 था यानि दीवार से दीवार मिली थी उनके यहाँ अक्सर मजलिस का एहतमाम होता मर्सिहा,मंक़वत,सलाम ,कि महफ़िल जमती मैं भी अम्मी अब्बू के साथ  वहाँ जाता धीरे धीरे मैं ने बोलना सीखा होगा मुझे लगता है यही मजलिसें  मेरी शायरी कि बुनियाद है क्युनके वहां इतनी बढ़िया और मुदल्लल शायरी सुनी है जो आज भी ज़हनो दिल पर हावी है 
सहोदर की दुकान से धन्नो का मकान साफ़ नज़र आता था,और एक रास्ता पूनम के घर की तरफ़ जाता था बाद मे राजू की शादी पूनम से हुई दोस्तो की देर रात तक महफ़िल जमतीं थी,रात को सब अपने-अपने परिवार के साथ घूमने निकलते थे,लडकियाँ बहुए और भाभीयाँ एक साथ हो जाती थी,बूढे अलग जवान अलग,देर रात तक क्लब के अन्दर और मैदान मे डेरा रहता फ़िर सब वापस आते
दुर्गा पूजा,रामलीला के दिनो मे तो जैसे बहार ही आ जाती थी इन ही दिनो का तो साल भर इन्तजार रहता था मुझे आज भी याद है के दुर्गा पूजा और रामलीला के बाद धनतेरस आती अम्मी और अब्बु धनतेरस पर खूब खरीदारी करते कई बार कुछ तंग जहन मुस्लिम्स ने टोका भी के अब्दुल रशीद साहेब धनतेरस पर आप खरीदारी क्यूँ करते हैं ये इस्लाम के खिलाफ़ है अब्बू सिर्फ़ मुस्करा देते एक धनतेरस पर अब्दुल्लाह साहेब ज़िद ही पकड गये और कई मुस्लिम दोस्तो के साथ अब्बू को शर्मीन्दा करने पर आमादा हो गये तो अब्बू ने मुस्कराते हुए जवाब दिया के पूरी कालोनी इस दिन खरीदारी करती है बच्चे कितनी बेसब्री से इस दिन का इन्तज़ार करते है इन मासूमो का दिल दुखाना मेरे बस की बात नही बच्चो को बच्चा ही रहने दें इन के ज़ह्नो मे हिन्दू मुस्लिम का ज़हर न घोलें
मुझे खूब याद है दीपावली की रात एक दुसरे को तोहफे देते समय आँखे नम हो जाती थीं पता नही अगले साल हम यहाँ रहेगे या तबादला हो जायेगा क्यूँ के  वहाँ सब परदेसी थे सरकारी मुलाजिम थे और बिछडने का खौफ़ हमेशा रहता था
वहाँ धर्म जाति का आडम्बर नही था शिया सुन्नी का झगड़ा भी नहीं था किसी का किसी से खून का रिश्ता भी नही था मगर एक बेशकीमती रिश्ता था मुहब्बत का रिश्ता, अपनेपन का रिश्ता मुझे हर धनतेरस पर बहुत से चेहरे हू ब हू बैसे ही याद आ जाते हैं जैसे वो उस समय थे  उन मे से बहुत से तो अब इस दुनिया मे भी नही होंगे (देखें नोट) और बहुत से मेरी ही तरह बूढापे की दहलीज़ पर होगे मगर खयालो मे वो आज भी वैसे ही आते हैं जैसा मैने उन को  आखिरी  बार देखा था ...... मै अपने ये शेर उन को समर्पित करता हूँ

वो जब भी ख्वाब मे आये तो रत्ती भर नहीं बदले
ख्यालों मे बसे चेहरे कभी बूढे नहीं होते

ज़रा पुरवाई चल जाए तो टांके टूट जाते हैं
बहुत से ज़ख्म होते है, कभी अच्छे नहीं होते

हमारे ज़ख्म शाहिद हैं के तुम को याद रक्खा है
अगर हम भूल ही जाते तो ये रिसते नहीं होते

कई मासूम चेहरे याद आये
किताबों से जो पर तितली के निकले 

है  यही  तो  कमाल   यादों  का  
ये हमेशा जवान रहती हैं  


नोट 1.जैसे सरिता भाभी नीता भाभी कविता दीदी,रजनी दीदी, जगदीश भैया,सहोदर भैया सुकुमार भैया ,शारदा भौजी , हमारी उम्र उस वक़्त 12-15 वर्ष की थी और इन सब कि लगभग30-35
2.  चोबे अंकल,किशन अंकल,शर्मा अंकल ,सक्सेना अंकल,वर्माजी , रावत अंकल, नथानी अंकल, गोस्वामी अंकल,शकूर चच्चा, रमजानी चच्चा,अब्दुल्लाह चच्चा,नसीम चच्चा,पुत्तन चच्चा,मिर्ज़ा जी रिज़वी साहेब,तमन्ना अमरोहवी साहेब,सिद्दीकी ठेकेदार,ज़फीर ठेकेदार, नकवी साहेब पुलिस चौकी के पास वाले, दुसरे नकवी साहेब हैडिल कालोनी थोमस अंकल जोसेफ अंकल,सरदार परमजीत पम्मी और एक साहेब जो बालीबाल में पूरी कालोनी के उस्ताद थे शिया थे टोनी के सामने रहते थे मैं उन का नाम भूल रहा हूँ (शायद शकील रज़ा था ) और बहुत से अब्बू के दोस्त और अम्मी की सहेलियां    

............आदिल रशीद 3-11-2010
शाहिद= गवाह,
मेरा जन्म C-824,वर्क चार्ज कालोनी कालागढ़ में हुआ घर में सब चाँद कहते थे , अब्बू का नाम अब्दुल रशीद, बड़े भाई का नाम खलील अहमद ,उसके बाद तौफीक अहमद,छोटा भाई रईस छुट्टन बहन किसवरी,मिसवरी,और कौसर परवीन
भाई साहेब खलील के दोस्त रज्जन,प्रदीप शॉप no.4,मुन्ना ठेकेदार,सलाउद्दीन नाई, 


बाद का काम दोस्तों ने बखूबी अंजाम दिया ख़त दोस्त डालते नफीसा और जमीला का नाम लिख के ताजपोशी हम तीनों की होती.
बाद में उस पार्टी में फिल्म न दिखाने  के कारण फूट पड़ी और एक "विधायक"टूट कर हमारे दल में आ गया उस ने हम तीनो के परिवार वालों को बताया के बाद के सभी पोस्टकार्ड हमारे उन्ही परम मित्रों ने ही पोस्ट किये थे जो हमारी ताजपोशी के बाद हमारे साथ लाल -लाल आंसुओं से रोया भी करते थे:

Saturday, 16 October 2010

आज विजय दशमी ईद है /आदिल रशीद/ कालागढ/kalagarh/17/10/2010

आज विजय दशमी यानी ईद है
रोम रोम फिर व्याकुल है
कितनी यादे सिमट कर एक कहानी सी कह रहीं हैं.आज का दिन एक खास उल्लास का दिन होता था दुर्गा पूजा रावण दहन का दिन मोज मस्ती का दिन.
बिल्कुल आज की ईद जैसा,
क्य़ू के आज तो मेरे बच्चों की ज़िन्दगी में केवल दो ही ईदें हैं
कालागढ मे तो मेरे बचपन मे कितनी ईदें होती थी.दुर्गा पूजा रावण दहन विजय दशमी की ईद ,होली की ईद,क्रिसमस की ईद ,रक्षा बंधन की ईद विश्वकर्मा दिवस की ईद,
15 अगस्त, 26 जनवरी, 2अक्तूबर, रविदास जयंतीकी ईद.
रविदास जयंती,15अगस्त 26जनवरी, 2 अक्तूबर को होने वाले खेलों में 100मीटर रेस में हमेशा शन्नू और शमीम को हराकर 50 पैसे क़ा पेन (गोल्ड मेडल ) जितने की ईद ऊँची कूद में हर बार शन्नू से हार जाने की ईद क्यूँ के गोल्ड मेडल जीता तो दोस्त ही और दोस्ती मे क्या तेरा और क्या मेरा।
अपने जन्म दिन 25 दिसम्बर पर हर बार मिसेज़ विलियम का एक ह़ी डायलाग सुनने की ईद "तुम ने मेराक्रिसमस खराब किया था संन" क्यूँ के मैं और मेरा छोटा भाई छुट्टन 25 दिसम्बर को ह़ी पैदा हुए थे और दोनों बार उन्होंने पूरी रात जश्न के बजाये अस्पताल मे काटी
थी
और भी बहुत सी छोटी छोटी ईदें जैसे के शन्नू के ख़त का जवाब आ जाने की ईद, रश्मि गहलोत के घर की राजस्थानी कचोरी खाने की ईद ,सब दोस्तों का पैसे मिला कर डबल सेवेन या कोका कोका कोला पीने की ईद हरमहीने की पहली तारीख की ईद क्यूँ के उस तारीख को पापा को तन्खवाह मिलती थी और हमें कोई कोई तोहफा हर तब रोज़ एक ईद होती थी क्यूँ के ईद अरवी का शब्द (लफ्ज़ ) है जिसके लुग्वी यानि शाब्दिक अर्थ है, ख़ुशी ,वो ख़ुशी जो रोम रोम से महसूस हो, बार -बार आने वाली ख़ुशी,
शन्नू और शमीम हमेशा रेस में हारने पर कहा करते थे के बच्चू एक दिन तुझे ज़रूर हरायेगे और ज़िन्दगी की दौड में वाकई दोनों ने
मुझे हरा दिया शन्नू 1990 में ही और शमीम अभी २महीने पहले सउदी अरब में मुझे तनहा छोड़ गया और आज मेरी रेस सिर्फ और सिर्फ खुद से है ..............आदिल रशीद (चाँद) 18/10/2010

kalagarh ki yadon ke naam ek kavita /aadil rasheed

यादो के रंगों को कभी देखा है तुमने

कितने गहरे होते हैं

कभी न छूटने वाले

कपडे पर रक्त के निशान के जैसे

मुद्दतों बाद आज आया हूँ मैं

इन कालागढ़ की उजड़ी बर्बाद वादियों में

जो कभी स्वर्ग से कहीं अधिक थीं

जाति धर्म के झंझटों से दूर

सोहार्द सदभावना प्रेम की पावन रामगंगा

तीन बेटियों और एक बेटे का पिता हूँ मैं आज

परन्तु इस वादी मे आकर

ये क्या हो गया

कौन सा जादू है

वही पगडंडी जिस पर कभी

बस्ता डाले कमज़ोर कन्धों पर

जूते के फीते खुले खुले से

बाल सर के भीगे भीगे से

स्कूल की तरफ भागता ,

वापसी मे

सुकासोत की ठंडी रेट पर

जूते गले में डाले

नंगे पैरों पर वो ठंडी रेत का स्पर्श

सुरमई धुप मे

आवारा घोड़ों

और कभी कभी गधों को

हरी पत्तियों का लालच देकर पकड़ता

और उन पर सवारी करता

अपने गिरोह के साथ डाकू गब्बर सिंह

रातों को क्लब की

नंगी ज़मीन पर बैठ फिल्मे देखता

शरद ऋतू में रामलीला में

वानर सेना कभी कभी

मजबूरी में बे मन से बना

रावण सेना का एक नन्हा सिपाही

और ख़ुशी ख़ुशी रावण की हड्डीया लेकर

भागता बचपन मिल गया

आज मुद्दतों पहले

खोया हुआ

चाँद मिल गया

Friday, 15 October 2010

kalagah ki yaad me ek sher by aadil rasheed

kai maasoom chehre yaad aaye
kitabon se jo par titli ke nikle

arth: aaj mujhe apne bachpan ke kai maasom maasoom chehre yaad aagaye jaise rishi raaj kishor shameem,zakir,sanjay joseph gauri shankar,sheeshpaal,kaale arvind,khutku jerry john, shannu,dilip singh bisht,dharmi,deenu,anusuiya,rehana,rashmi gehlot ,tabassum arshi,vipin chaand,soniya ,naresh,ganga,jagdeesh,ramesh,saleem,raaju,yusuf,toni
jasvindar singh jassa master astarni, sukhdev,rais,nafees, nafeesa,jameel .........
kyunki bachpan me kabhi chhupaye titli ke par aaj kuch puraani kitabon se nikal aaye

kalagarh ki kuchh tasveeren /aadil rasheed





meri puraani yaaden tasveer ki shakl men /aadil rasheed


zakir akela aur main


zakir akela ,aur main chaand


waseem barelvi, mueen shaadab

ek mushayre









meri ek puraani tasveer/aadil rasheed