kalagarh
Sunday, 22 September 2013
aadil rasheed poet born in kalagarh kalagarh dam
aadil rasheed aur dr. mujeeb shehzar ek mushaire me

दोस्त पक्के हैं मेरे.....आदिल रशीद कालागढ़
दोस्त पक्के हैं मेरे.....आदिल रशीद कालागढ़
हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस सफे कुफुछ क्फ्हफा थफा (तूने उस से कुछ कहा था ) ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते खूब हँसते.
मेरा और जाकिर अंसारी अकेला का एक अलग तरह का शौक़ था या यूँ कहिये जूनून था अपने कालागढ़ का नाम मशहूर करने का इसके लिए हम रेडिओ स्टेशन पर गाने की फरमाईश भेजते उस समय पोस्ट कार्ड 10 पैसे का होता था जो जेब खर्च मिलता सारे पैसों के पोस्टकार्ड ले लेते. आपकी पसंद , आपकी फरमाईश , युव वाणी जैसे प्रोग्राम जो नजीबाबाद रामपुर दिल्ली से प्रसारित होते थे उन प्रोग्राम में जब हमारा नाम आता और उद्घोषक या उद्घोषिका कहती के इस गीत की फरमाईश करने वाले हैं कालागढ़ से आदिल चाँद, जाकिर अकेला,सलीम बेबस, रमेश तन्हा तो हम ऐसे उछलते ऐसे उछलते वैसे तो अब हम वर्ल्ड कप जीतने पर भी नहीं उछलते.
जाकिर बहुत शरारती था एक बार उसने कुछ पोस्ट कार्ड दूसरों के नाम से भी डाल दिए जैसे वर्क चार्ज कालोनी कालागढ़ से नफीसा अन्डो वाली और फिर जो हंगामा हुआ उसमे छुपे छुपे भी घूमे नफीसा को लगातार कम से कम 8 रविवार 50 पैसे के गोलगप्पे रिश्वत के रूप में खिलाने के बावजूद भी उसने समर्थन नहीं दिया और नफीसा ने अम्मी से शिकायत की तो दोनों की अपने अपने घर में ताजपोशी भी हुई.
बाद का काम दोस्तों ने बखूबी अंजाम दिया ख़त दोस्त डालते किसी का भी नाम लिख के और ताजपोशी हम दोनों की होती.
बाद में उस पार्टी में फिल्म न दिखाने के कारण फूट पड़ी और एक "विधायक"टूट कर हमारे दल में आ गया उस ने हम तीनो के परिवार वालों को बताया के बाद के सभी पोस्टकार्ड हमारे उन्ही परम मित्रों ने ही पोस्ट किये थे जो हमारी ताजपोशी के बाद हमारे साथ लाल -लाल आंसुओं से रोया भी करते थे:
दोस्त पक्के हैं मेरे गम में भी रोयेंगे मगर
दिल दुखाना भी ये शैतान नहीं छोड़ेंगे (आदिल रशीद)
(कालागढ़ की धनतेरस में से.....पूरे लेख के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें)
https://www.facebook.com/notes/aadil-rasheed/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A2-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%B8-kalagarh-ki-dhanterasaadil-rasheed/10150392750391982
एशिया का सब से बड़ा मिटटी का बाँध। कालागढ़ kalagarh dam
उत्तराखंड में रामगंगा नदी पर बना कालागढ़ डैम दुनिया के प्रसिद्ध अजूबों जैसा ही है। इसे एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम होने का सौभाग्य प्राप्त है। डैम एरिया में मैसूर के कावेरी नदी पर बने वृंदावन गार्डन की तर्ज पर विकसित शानदार उद्यान भी है। कालागढ़ से कार्बेट में प्रवेश के लिए एक गेट भी है। इस गेट से प्रवेश कर कार्बेट के वन्य प्राणियों का भी आसानीसे अवलोकन किया जा सकता है। यहां से कंडी मार्ग से कोटद्वार और रामनगर भी जाया जा सकता है।
शिवालिक पहाड़ियां पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर रामगंगा के तट पर कालागढ़ स्थित है। दिल्ली से मेरठ, बिजनौर होकर लगभग पांच घंटे में कालागढ़ पहुंचा जा सकता है। कालागढ़ में सिंचाई विभाग के कुछ रेस्टहाउस और प्रशिक्षण केंद्र हैं। डैम बनने के समय कर्मचारियों और अधिकरियों के लिए कुछ कॉलोनी बनाई गई थीं। रिजर्व वन होने के कारण डैम बनने के बाद कालागढ़ की भूमि कार्बेट प्रशासन को सौंप दी गई। उसने यहां बनी कई कॉलोनी गिरा दी। हालांकि कुछ कालोनी अब भी हैं। यहां एक छोटा बाजार भी है।
मिट्टी का डैम होने के कारण कालागढ़ एक दर्शनीय स्थल है। रामगंगा के पानी को रोकने के लिए पहाड़ियों के बीच रेत-सीमेंट का ढांचा नहीं, बल्कि मिट्टी और पत्थर लगाए गए हैं। बांध के साथ ही बिजली घर भी बना है। यहां 66-66 मेगावाट की तीन यूनिट लगी हैं। तीनों मिलाकर 198 मेगावाट बिजली बनाती है। डैम में 365.3 मीटर पानी सिंचाई के लिएरिजर्व वाटर के रूप में रखा जाता है।
बांध के नजदीक शानदार पार्क तो है ही, इसमें बनी सुरंग भी कम आकर्षक नहीं है। लगभग 70 मीटर गहरी इस सुरंग से रामगंगाके जल के नीचे पहुंचा जा सकता है। जल के नीचे अपने को खडे़ देखकर शरीर में अजीब-सी झुरझुरी उठने लगती है। यहीं एक सुरंग अंदर ही अंदर बिजलीघर तक चली जाती है। डैम के नीचे एक तरह से सुरंगोंका जाल बिछा हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें प्रवेश नहीं दिया जाता।
रामगंगा नदी में घड़ियाल तथा विभिन्न प्रकार की मछलियां हैं। डैम एरिया में वृंदावन गार्डन की तरह विकसित एक उद्यान के 450 मीटर लंबे फव्वारे में बहता पानी और उस पर पड़ती रंग-बिरंगी रोशनी मन को मोह लेती है। इस उद्यान मेंविभिन्न प्रजातियों के पौधे और फूल भी कम आकर्षक नहीं हैं। हालांकि देखरेख केअभाव में उद्यान इस समय खस्ता हालत में हैं। अगर कालागढ़ पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए, तो यह एक शानदार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।
Saturday, 14 September 2013
dhartee ko aakash pukaare
aadilrasheed1967@gmail.com
www.facebook.com/aadilrasheedpoeti
agar aap ka bachpan kalagarh me guzra hai aur aapko bhi kalagarh bahut yaad aata hai to plz apni jaankari den is email par
aadilrasheed1967@gmail.com
facebook par bhi jud sakte hain
www.facebook.com/aadilrasheedpoeti
kalagarh 6-9-2013 aadil rasheed
आगे जा कर मछली मारी और भून के खाई नदी में काफी मेहनत के बाद से मछली मरने के बाद वहीँ भून के खाने का मज़ा ही अलग होता है कभी मौक़ा लगे तो आजमा कर देखना धीरे धीरे शाम होती गयी फिर सूरज के अस्त होने का दिलकश मंज़र देखा और लौट आये घर को। …अदिल रशीद
Monday, 23 July 2012
kalagarh ki bahut purani tasveeren by A.S. khan father of Sajid khan

Friday, 6 January 2012
Wednesday, 4 January 2012
Tuesday, 8 November 2011
sahodar ki dukan in kalagarh by aadil rasheed
उर्फ़ चाँद, और मेरे बचपन के दोस्त दिलीप सिंह बिष्ट , दिनेश सिंह रावत उर्फ़ दीनू ,धरम पल सिंह धर्मी,शमीम,शन्नू,असरार फास्ट बोलर,संजय जोजफ़,जाकिर अकेला,सलीम बेबस,रमेश तन्हा,राजू,यूसुफ़,शिवसिंह,गौरी,काले,अरविन्द,शीशपाल,नरेश,करतार,सभी जमा होते थे,और हमारी एक अलग भाषा थी तुफुनफे उफुस नफे सफे ....सब बुज़ुर्ग हमारा मुंह देखते हम खूब मजाक करते,
Saturday, 13 November 2010
दो शेर अशआर /आदिल रशीद /aadil rasheed
आज से तुम को याद करना है
जिन्दगी की उलझनों ने मुझे इतना वक़्त नहीं दिया के मैं तुम्हे उस एहतमाम से याद कर सकूं, उस तरह याद कर सकूं जिस तरह याद किया जाना तुम्हारा हक है मुझ पर मै आज ज़िन्दगी की तमाम उलझनों से आज़ाद हूँ आज मैं वाकई तुम्हे उस तरह याद कर सकता हूँ सच्चे दिल से ...............याद करने का अभिनय नहीं
पहले फरयाद उन से करनी है
फैसला उसके बाद करना है
पहले रिश्ता बहाल करने की इल्तिजा ,फरयाद गुज़ारिश, बीते खुशनुमा दिनों का हवाला,वास्ता यानि हर मुमकिन कोशिश के किसी तरह रिश्ता बहाल रहे ,और जब कोई रास्ता न बचे तो फिर हार के बे मन से एक गम्भीर फैसला यानि तर्के ताल्लुक
आदिल रशीद
Wednesday, 3 November 2010
कालागढ की धनतेरस/ kalagarh ki dhanteras/aadil rasheed
Saturday, 16 October 2010
आज विजय दशमी ईद है /आदिल रशीद/ कालागढ/kalagarh/17/10/2010
रोम रोम फिर व्याकुल है
कितनी यादे सिमट कर एक कहानी सी कह रहीं हैं.आज का दिन एक खास उल्लास का दिन होता था दुर्गा पूजा रावण दहन का दिन मोज मस्ती का दिन.
बिल्कुल आज की ईद जैसा,
क्य़ू के आज तो मेरे बच्चों की ज़िन्दगी में केवल दो ही ईदें हैं
कालागढ मे तो मेरे बचपन मे कितनी ईदें होती थी.दुर्गा पूजा रावण दहन विजय दशमी की ईद ,होली की ईद,क्रिसमस की ईद ,रक्षा बंधन की ईद विश्वकर्मा दिवस की ईद, 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2अक्तूबर, रविदास जयंतीकी ईद.
रविदास जयंती,15अगस्त 26जनवरी, 2 अक्तूबर को होने वाले खेलों में 100मीटर रेस में हमेशा शन्नू और शमीम को हराकर 50 पैसे क़ा पेन (गोल्ड मेडल ) जितने की ईद ऊँची कूद में हर बार शन्नू से हार जाने की ईद क्यूँ के गोल्ड मेडल जीता तो दोस्त ही और दोस्ती मे क्या तेरा और क्या मेरा।
अपने जन्म दिन 25 दिसम्बर पर हर बार मिसेज़ विलियम का एक ह़ी डायलाग सुनने की ईद "तुम ने मेराक्रिसमस खराब किया था संन" क्यूँ के मैं और मेरा छोटा भाई छुट्टन 25 दिसम्बर को ह़ी पैदा हुए थे और दोनों बार उन्होंने पूरी रात जश्न के बजाये अस्पताल मे काटी थी
और भी बहुत सी छोटी छोटी ईदें जैसे के शन्नू के ख़त का जवाब आ जाने की ईद, रश्मि गहलोत के घर की राजस्थानी कचोरी खाने की ईद ,सब दोस्तों का पैसे मिला कर डबल सेवेन या कोका कोका कोला पीने की ईद हरमहीने की पहली तारीख की ईद क्यूँ के उस तारीख को पापा को तन्खवाह मिलती थी और हमें कोई न कोई तोहफा हर तब रोज़ एक ईद होती थी क्यूँ के ईद अरवी का शब्द (लफ्ज़ ) है जिसके लुग्वी यानि शाब्दिक अर्थ है, ख़ुशी ,वो ख़ुशी जो रोम रोम से महसूस हो, बार -बार आने वाली ख़ुशी,
शन्नू और शमीम हमेशा रेस में हारने पर कहा करते थे के बच्चू एक दिन तुझे ज़रूर हरायेगे और ज़िन्दगी की दौड में वाकई दोनों ने मुझे हरा दिया शन्नू 1990 में ही और शमीम अभी २महीने पहले सउदी अरब में मुझे तनहा छोड़ गया और आज मेरी रेस सिर्फ और सिर्फ खुद से है ..............आदिल रशीद (चाँद) 18/10/2010
kalagarh ki yadon ke naam ek kavita /aadil rasheed
यादो के रंगों को कभी देखा है तुमने
कितने गहरे होते हैं
कभी न छूटने वाले
कपडे पर रक्त के निशान के जैसे
मुद्दतों बाद आज आया हूँ मैं
इन कालागढ़ की उजड़ी बर्बाद वादियों में
जो कभी स्वर्ग से कहीं अधिक थीं
जाति धर्म के झंझटों से दूर
सोहार्द सदभावना प्रेम की पावन रामगंगा
तीन बेटियों और एक बेटे का पिता हूँ मैं आज
परन्तु इस वादी मे आकर
ये क्या हो गया
कौन सा जादू है
वही पगडंडी जिस पर कभी
बस्ता डाले कमज़ोर कन्धों पर
जूते के फीते खुले खुले से
बाल सर के भीगे भीगे से
स्कूल की तरफ भागता ,
वापसी मे
सुकासोत की ठंडी रेट पर
जूते गले में डाले
नंगे पैरों पर वो ठंडी रेत का स्पर्श
सुरमई धुप मे
आवारा घोड़ों
और कभी कभी गधों को
हरी पत्तियों का लालच देकर पकड़ता
और उन पर सवारी करता
अपने गिरोह के साथ डाकू गब्बर सिंह
रातों को क्लब की
नंगी ज़मीन पर बैठ फिल्मे देखता
शरद ऋतू में रामलीला में
वानर सेना कभी कभी
मजबूरी में बे मन से बना
रावण सेना का एक नन्हा सिपाही
और ख़ुशी ख़ुशी रावण की हड्डीया लेकर
भागता बचपन मिल गया
आज मुद्दतों पहले
खोया हुआ
चाँद मिल गया