सुबह सवेरे ही निकल पड़े पुरानी यादों को ताज़ा करने और जा पहुंचे मीरा सोत जो के मछली मारने का एक यादगार पॉइंट है लेकिन अब वहां बहुत कुछ बदल गया है
मीरा सोत में कुछ पुराने दोस्तों से या यूँ कहो उन पुराने दोस्तों के बच्चों से मुलाक़ात हुई.सुरमई धुप में बड़े आराम से धूप सेंक रहे थे
हमने भी इनको परेशान करना मुनासिब नहीं समझा और निकल पड़े कहीं और
आगे जा कर मछली मारी और भून के खाई नदी में काफी मेहनत के बाद से मछली मरने के बाद वहीँ भून के खाने का मज़ा ही अलग होता है कभी मौक़ा लगे तो आजमा कर देखना धीरे धीरे शाम होती गयी फिर सूरज के अस्त होने का दिलकश मंज़र देखा और लौट आये घर को। …अदिल रशीद
Poorani yadein taza ho gayi.
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